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Campus perspectives

आसान नहीं है (भाग-1)

छह बज रहे हैं, इंद्रधनुष का आखिरी बैच छूटने के लिए तैयार है, शर्मिष्ठा भूमि को घर का काम दे रही है। शर्मिष्ठा कह रही है, "भूमि बड़ी 'ई' की मात्रा के दस शब्द तुम्हें घर से करके लाने हैं, ठीक है?"

भूमि ने जवाब दिया, "अच्छा मैम, करके ले आऊंगी। आप सोच रहे होंगे कि ये इंद्रधनुष क्या है और शर्मिष्ठा कौन है? अच्छा तो सुनिए, शर्मिष्ठा श्री राम कॉलेज की एक विद्यार्थी है जो इंद्रधनुष में छोटे बच्चों को पढ़ाने जाती है। यहाँ पर इंद्रधनुष एक शिक्षा केंद्र है जो शिक्षकों, विभिन्न कॉलेजों के छात्रों एवं समाजसेवियों के साझा प्रयासों से सरकारी स्कूलों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की राह में प्रयासरत है। शर्मिष्ठा अक्सर कहती है कि जब वो कॉलेज के तनाव से भर जाती है, तब उसे यहाँ आकर सुकून मिलता है।

Image Courtesy : SRCC

आज 'पोलिटिकल इकोनॉमी' का एक टेस्ट होने वाला है, पता नहीं क्यों शर्मिष्ठा इस विषय से बहुत घबराती है, वह कहती कि यह उसके पल्ले ही नहीं पड़ता है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि क्लास के दूसरे बच्चे भी इससे उतना ही घबराते हैं, और जो कॉरिडोर में अंग्रेज़ी में बक-बक करते घूमते हैं, कभी-कभी यह उनके सर के ऊपर से भी चली जाती है। मैंने उससे कहा था कि सर से क्यों नहीं पूछ लेती हो, उसने कहा था, "पता नहीं सर से पूछने में मुझे न जाने क्यों डर लगता है, इसलिए उनसे पूछती नहीं हूँ।" सर से न सही, तो फिर महर से पूछ लो, मैंने सुना है कि उसके कॉन्सेप्ट्स काफी क्लेयर हैं। "अच्छा-अच्छा देखती हूँ," उसने जवाब दिया।


टेस्ट खत्म हो चुका था, शर्मिष्ठा अपनी दोस्त ज्योति और प्रीति के साथ बाहर निकल रही थी, मैंने उसे देखते ही टोका, टेस्ट तो अच्छा गया न, "हाँ ठीक ही था" उसने जवाब दिया।


मेरी बात आखिकार शर्मिष्ठा ने मान ली, महर उसे बता रही थी, "अरे यार डायलेक्टिक्स समझना इतना भी मुश्किल नहीं है, देखो एक एनालॉजी देती हूँ तुम्हें, जैसे एक पौधे में फूल और काँटों का अपना महत्व होता है और दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर करता है, क्योंकि दोनों का उलटा रवैया होने के बावजूद भी वे दोनों अपनी-अपनी तरह से पौधे के संपूर्ण विकास में अपना योगदान देते हैं। हमारा समाज भी इस मामले में एक पौधे जैसा ही है और यहाँ भी विपरीत शक्तियाँ एक-दूसरे के अगल-बगल रह कर हमारे समाज को आगे बढ़ाती हैं। यही है डायलेक्टिक्स, कुछ समझ आया?"

"अरे वाह, ये तो बड़ा मजेदार है, अब मुझे याद रहेगा ये," शर्मिष्ठा ने मुस्कुराते हुए कहा।


एक दिन शर्मिष्ठा ने गुजरते हुए देखा कि दो लड़कियाँ अपने आईफोन्स के साथ शकलें बना रही थीं, अपने शरीर को टेढ़ा-तिरछा कर रही थीं, उसे बहुत अजीब लग रहा था, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था, क्योंकि ऐसी चीजें उसके गाँव में कहाँ देखने को मिलती थीं। अगले दिन जब वह इन्द्रधनुष में बच्चों को पढ़ा रही थी तब वह भी उन्हीं लड़कियों की तरह मुँह बनाने की कोशिश कर रही थी और अंजलि शर्मिष्ठा को यह करते देखकर खुद भी वैसा करने की कोशिश कर रही थी। खैर थोड़ी देर बाद दोनों का ही मुँह दुखने लग गया, शर्मिष्ठा अंजलि को फिर से पढ़ाने लगी।


शर्मिष्ठा को आज यमुना के लिए इंटरव्यू देना है, यमुना श्री राम कॉलेज की वार्षिक पत्रिका है और यह एक सोसाइटी के रूप में भी काम करती है। शर्मिष्ठा को बुलाया गया, कॉलेज के दो वरिष्ठ छात्र जो कि यमुना का ही हिस्सा थे उसका इंटरव्यू लेने के लिए तैयार थे। "आप यमुना से क्यों जुड़ना चाहते हैं?" उनमें से एक इंटरव्यूअर ने पूछा। "मैं यमुना से इसलिए जुड़ना चाहती हूँ क्योंकि मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती है और अन्य सोसाइटी के मुकाबले यमुना में सिर्फ हिंदी से काम चल सकता है।" शर्मिष्ठा ने फौरन जवाब दिया। "अच्छा, लेकिन यदि यहाँ भी आपको अंग्रेजी में भाषण देने के लिए कहा जाए तब आप क्या करेंगी?" दूसरे इंटरव्यूअर ने पूछा। शर्मिष्ठा ने इसका उत्तर इस तरह से दिया- "अगर ऐसा है तो मैं कोशिश करूँगी, और अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है, यह कोई माउंट एवेरेस्ट थोड़े ही है कि मैं इसे छू न सकूँ।" "हम यमुना में आपका स्वागत करते हैं," दोनों इंटरव्यूअर ने एक साथ कहा। "अरे वाह! मैं ऐसा भी जवाब दे सकती हूँ," शर्मिष्ठा खुद को शाबाशी दे रही थी।

~Anonymous


( Views expressed in the readers' article session are personal and not necessarily that of team 'Campus Perspectives' )



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